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अध्याय 10: श्रीभगवान् का ऐश्वर्य


श्लोक 26

अश्र्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः |
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः || २६ ||

शब्द-प्रतिशब्द अर्थ

अश्र्वत्थः – अश्र्वत्थ वृक्ष; सर्व-वृक्षाणाम् – सारे वृक्षों में; देव-ऋषिणाम् – समस्त देवर्षियों में; च – तथा; नारदः – नारद; गन्धर्वाणाम् – गन्धर्वलोक के वासियों में; चित्ररथः – चित्ररथ; सिद्धानाम् – समस्त सिद्धि प्राप्त हुओं में; कपिलः-मुनिः – कपिल मुनि |

भावार्थ

मैं समस्त वृक्षों में अश्र्वत्थ हूँ और देवर्षियों में नारद हूँ | मैं गन्धर्वों में चित्ररथ हूँ और सिद्ध पुरुषों में कपिल मुनि हूँ |

तात्पर्य

अश्र्वत्थ वृक्ष सबसे ऊँचा तथा सुन्दर वृक्ष है, जिसे भारत में लोग नित्यप्रति नियमपूर्वक पूजते हैं | देवताओं में नारद विश्र्वभर में सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं और पूजित होते हैं | इस प्रकार वे भक्त के रूप में कृष्ण के स्वरूप हैं | गन्धर्वलोक ऐसे निवासियों से पूर्ण है, जो बहुत अच्छा गाते हैं, जिनमें से चित्ररथ सर्वश्रेष्ठ गायक है | सिद्ध पुरुषों में से देवहुति के पुत्र कपिल मुनि कृष्ण के प्रतिनिधि हैं | वे कृष्ण के अवतार माने जाते हैं | इसका दर्शन भागवत में उल्लिखित है | बाद में भी एक अन्य कपिल प्रसिद्द हुए, किन्तु वे नास्तिक थे, अतः इन दोनों में महान अन्तर है |