रागी कर्मफलप्रेप्सुर्लुब्धो हिंसात्मकोऽशुचिः।
हर्षशोकान्वितः कर्ता राजसः परिकीर्तितः॥
रागी — आसक्त; कर्म-फल-प्रेप्सुः — कर्मफल की इच्छा करने वाला; लुब्धः — लोभी; हिंसा-आत्मकः — निर्दयी; अशुचिः — अपवित्र; हर्ष-शोक-अन्वितः — हर्ष और शोक से प्रभावित; कर्ता — कर्ता; राजसः — रजोगुणी; परिकीर्तितः — कहा गया है।
जो व्यक्ति आसक्त होता है, कर्म के फलों की इच्छा करता है, लोभी, निर्दयी, अपवित्र और हर्ष तथा शोक से प्रभावित होता है — ऐसा कर्ता रजोगुणी कहा गया है।
रजोगुणी कर्ता को अपने कर्मों के परिणाम की तीव्र इच्छा रहती है और वह भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए कर्म करता है। वह कभी-कभी हिंसा भी करता है, और अक्सर न तो शुद्ध होता है, न ही संतुलित। ऐसे व्यक्ति को अपने कार्यों से अत्यधिक आशाएँ होती हैं और जब वे पूरी नहीं होतीं तो वह शोक करता है, और जब होती हैं तो अत्यधिक प्रसन्नता दर्शाता है। इस प्रकार, वह मानसिक रूप से स्थिर नहीं होता और उसका मन सदैव उतार-चढ़ाव में रहता है।