श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्र्चला |
समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि || ५३ ||
श्रुति – वैदिक ज्ञान के; विप्रतिपन्ना – कर्मफलों से प्रभावित हुए बिना; ते – तुम्हारा; यदा – जब; स्थास्यति – स्थिर हो जाएगा; निश्र्चला – एकनिष्ठ; समाधौ – दिव्य चेतना या कृष्णभावनामृत में; अचला – स्थिर; बुद्धिः – बुद्धि; तदा – तब; योगम् – आत्म-साक्षात्कार; अवाप्स्यसि – तुम प्राप्त करोगे |
जब तुम्हारा मन वेदों की अलंकारमयी भाषा से विचलित न हो और वह आत्म-साक्षात्कार की समाधि में स्थिर हो जाय, तब तुम्हें दिव्य चेतना प्राप्त हो जायेगी |
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